लाइव भारत समाचार में आपका स्वागत है   भगवान भोले शंकर के नाम पर रखे गये कस्बे में तीन सौ पैसठ मंदिर व इतने ही विशाल कुएं। जिला मुख्यालय के 55 किमी. दूर इटवा तहसील अन्तर्गत बिस्कोहर कस्बा अपने अतीत को कई स्मृतियों में संजोये हुए है। विष को हरने वाले भगवान शंकर के नाम पर रखे गये कस्बे में तीन सौ पैसठ मंदिर व इतने ही विशाल कुएं अपनी ऐतिहासिकता का स्पष्ट गवाह है। सात सौ साल पूर्व बनाये गये मंदिरों में पहले एक साथ पूजा अर्चना कर दौर चलता था। जिससे कस्बे के साथ-साथ अगल बगल के गांवों में भी घंटे की गूंज गूंजती थी। वर्तमान में करीब आधे से अधिक मंदिर खंडहर में तब्दील होकर सिर्फ अवशेष मात्र में सिमट कर रह गये है। बुजुर्गो का मानना है कि बिस्कोहर कस्बा कभी व्यापार का मुख्य केंद्र हुआ करता था, जहां कई जिलों के व्यापारियों के अलावा नेपाल के काठमांडू शहर से लोग सामानों की खरीद फरोख्त के लिए आते थे। जिससे यहां के व्यापारी काफी संपन्न थे। ऐसे में धार्मिक आस्था के चलते अधिकतर लोग मंदिरों का भव्य निर्माण कराने लगे। साथ ही पेयजल के लिए किसी को कोई परेशानी न हो इसके लिए मंदिर स्थलों पर विशाल कुएं भी खुदवाये गये। समय बदलता गया और बेहतर देखरेख के अभाव में जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुंच चुके शिव मंदिरों पर पूरे सावन महीने के अलावा सिर्फ सोमवार को ही विशेष पूजा अर्चना का दौर चलता है। यहां की ऐतहासिकता के बारे में न तो स्थानीय प्रशासन ने ध्यान दिया और न ही पर्यटन विभाग। अन्यथा इतनी संख्या में बने प्राचीन मंदिरों वाला उपेक्षित कस्बा विश्व पटल पर अपनी धार्मिक छाप छोड़ने में कामयाब रहता।              
सोमवार, 23 दिसम्बर , 2024

भगवान भोले शंकर के नाम पर रखे गये कस्बे में तीन सौ पैसठ मंदिर व इतने ही विशाल कुएं।

 

भगवान भोले शंकर के नाम पर रखे गये कस्बे में तीन सौ पैसठ मंदिर व इतने ही विशाल कुएं।

जिला मुख्यालय के 55 किमी. दूर इटवा तहसील अन्तर्गत बिस्कोहर कस्बा अपने अतीत को कई स्मृतियों में संजोये हुए है। विष को हरने वाले भगवान शंकर के नाम पर रखे गये कस्बे में तीन सौ पैसठ मंदिर व इतने ही विशाल कुएं अपनी ऐतिहासिकता का स्पष्ट गवाह है।

सात सौ साल पूर्व बनाये गये मंदिरों में पहले एक साथ पूजा अर्चना कर दौर चलता था। जिससे कस्बे के साथ-साथ अगल बगल के गांवों में भी घंटे की गूंज गूंजती थी। वर्तमान में करीब आधे से अधिक मंदिर खंडहर में तब्दील होकर सिर्फ अवशेष मात्र में सिमट कर रह गये है। बुजुर्गो का मानना है कि बिस्कोहर कस्बा कभी व्यापार का मुख्य केंद्र हुआ करता था, जहां कई जिलों के व्यापारियों के अलावा नेपाल के काठमांडू शहर से लोग सामानों की खरीद फरोख्त के लिए आते थे। जिससे यहां के व्यापारी काफी संपन्न थे। ऐसे में धार्मिक आस्था के चलते अधिकतर लोग मंदिरों का भव्य निर्माण कराने लगे। साथ ही पेयजल के लिए किसी को कोई परेशानी न हो इसके लिए मंदिर स्थलों पर विशाल कुएं भी खुदवाये गये। समय बदलता गया और बेहतर देखरेख के अभाव में जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुंच चुके शिव मंदिरों पर पूरे सावन महीने के अलावा सिर्फ सोमवार को ही विशेष पूजा अर्चना का दौर चलता है। यहां की ऐतहासिकता के बारे में न तो स्थानीय प्रशासन ने ध्यान दिया और न ही पर्यटन विभाग। अन्यथा इतनी संख्या में बने प्राचीन मंदिरों वाला उपेक्षित कस्बा विश्व पटल पर अपनी धार्मिक छाप छोड़ने में कामयाब रहता।

 

 

 

 

 

 

 

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