बस्ती, 13 जुलाई -लाइव भारत समाचार शहरी मुख्यालय के सड़कें गड्ढों में तब्दील हो गई हैं, हलकी सी बरसात में सड़कों पर चलने में मुश्किल होने लगती है, गड्ढे पता नही चलते, या फिर गहराई का अंदाजा नही लग पाता और राहगीर गिरकर चोटिल हो जाते हैं। कई बार लोग घर से तैयार होकर सजधज कर निकलते हैं और दूसरा वाहन उनके ऊपर गड्ढों का गंदा पानी उछालकर चल देता है।
यह समस्या एक दिन की नही है। राजनैतिक पार्टियां, सड़कों को गड्ढा मुक्त करने, का अपने घोसण़ा पत्र में बढचढकर उल्लेख करती हैं, लेकिन सत्ता हासिल करने के बाद वादे इरादे सब हाशिये पर चले जाते हैं।
कमोवेश यही स्थिति बस्ती जनपद की जनता भी झेल रही है। उन सड़को के बारे में सोचिए जो वारिस के समय दम तोड़ चुकी हैं, मरी हुई सड़को के शव के रूप में मरी हुई सड़को के ऊपर चलते हैं, सिर्फ फर्क इतना है कि अब इन सड़कों पर चलते ध्यान देना लोग छोड़ दिये।ये सड़के इस तरह बनाई गई हैं ,इतनी कमजोर है कि एक भी वारिस झेल नहीं पाती,जिससे भ्रस्ट गठबंधन को एक फिर सभी के सामने उजागिर कर दिया।यहां मालवीय रोड, ब्लाक रोड, सहित दर्जनों सड़कें खस्ताहाल है। इन सड़कों पर आये दिन दुर्घटनाएं होती हैं, तमाम जागरूकता कार्यक्रम चलाये जाते हैं लेकिन इन दुर्घटनाओं की असल वजह क्या है यह जानकर भी जन प्रतिनिधि और स्थानीय प्रशासन अंजान बना है।
प्रशासन और नगरपालिका इतनी गैरजिम्मेदार है कि सड़क बनाने वालो ठेकेदारों से जवाब भी नही तलब किया जाता, आखिर समय से पहले यह सड़क क्यों खराब हो गईं। निर्माण के समय जब सामाजिक कार्यकर्ता या विपक्षी नेता गुणवत्ता को लेकर सवाल उठाते हैं तो जांच के नाम कोरम पूरा करके अपना कमीशन ऐंठकर नेता, अफसर ठेकेदार सभी बगल हो जाते हैं। अंततः सजा जनता को भुगतनी पड़ती है। सड़क किनारे अक्सर लोग बिल्डिंग मेटेरियल की दुकान लगा लेते हैं, आधी सड़क में सामान पसर जाता है लेकिन कोई ऐसे लोगों को सबक नही सिखाता।
बस यातायात जागरूकता माह में पूरा जोश दिखाई देता है, उस वक्त भी घटनाओं की असल वजह पर ध्यान नही दिया जाता। इस वक्त कांवर यात्रा चल रही है। हजारों लाखों की संख्या में शिवभक्त सड़कों पर हैं। नंगे पैर वे अपने शहर से निकलकर अयोध्या पहुचेंगे, यहां पवित्र सरयू का जल भरकर वापस लौटेंगे और अपने अपने क्षेत्रों के शिवालयों में जलाभिषेक करेंगे। इतने बडे पर्व को लेकर भी की गई तैयारियां पर्याप्त नही हैं। सड़कों की ये स्थिति है कि जिसें 10 किमी. चलने पर थकान आयेगी वह 2 किमी. चलकर थक जायेगा। ये हाल सिर्फ शहरी क्षेत्र की सड़कों का नही है, हाइवे की हालत भी बहुत अच्छी नही है।
रिपोर्ट: अनिल श्रीवास्तव लाइव भारत समाचार