हल षष्ठी, तीन षष्ठी, शुभ मुहूर्त
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि का प्रारंभ 16 अगस्त दिन मंगलवार को रात 08 बजकर 17 मिनट पर से हो रहा है. इस तिथि का समापन अगले दिन 17 अगस्त को रात 08 बजकर 24 मिनट पर होगा. उदयातिथि की मान्यता के आधार पर हल षष्ठी व्रत 17 अगस्त को रखा जाएगा.
रवि योग में हल षष्ठी का विशेष महत्व है
17 अगस्त को हल षष्ठी के दिन रवि योग प्रात:काल से ही प्रारंभ हो जा रहा है. सुबह में करीब दो घंटे और रात में करीब 10 बजे से अगले दिन सूर्योदय तक है. रवि योग का प्रारंभ सुबह 05 बजकर 51 मिनट से होकर सुबह 07 बजकर 37 मिनट तक है. फिर रात में रवि योग 09 बजकर 57 मिनट से अगले दिन सुबह 05 बजकर 52 मिनट तक है.
हल षष्ठी का महत्व
माताएं हल षष्ठी का व्रत संतान की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए रखती हैं. इस व्रत को करने से बलराम जी यानि शेषनाग का आशीर्वाद प्राप्त होता है. बलराम जी को बलदेव, बलभद्र और हलयुद्ध के नाम से भी जानते हैं
हल षष्ठी की पूजा विधि
इस दिन प्रात: स्नान आदि से निवृत होकर हल षष्ठी व्रत और पूजा का संकल्प लेते हैं. फिर शुभ समय में बलराम जी की पूजा फूल, फल, अक्षत्, नैवेद्य, धूप, दीप, गंध आदि से करते हैं. उनसे पुत्र के सुखमय जीवन की कामना करते हैं. रात्रि के समय में पारण करके व्रत को पूरा किया जाता है. इस व्रत में हल की पूजा करते हैं और हल से उत्पन्न अन्न और फल नहीं खाते हैं. पूजा में भैंस का दूध उपयोग में लाया जाता है
हलछठ व्रत कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार, एक ग्वालिन गर्भवती थी। उसका प्रसव काल नजदीक था, लेकिन दूध-दही खराब न हो जाए, इसलिए वह उसको बेचने चल दी। कुछ दूर पहुंचने पर ही उसे प्रसव पीड़ा हुई और उसने झरबेरी की ओट में एक बच्चे को जन्म दिया। उस दिन हल षष्ठी थी। थोड़ी देर विश्राम करने के बाद वह बच्चे को वहीं छोड़ दूध-दही बेचने चली गई। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने गांव वालों ठग लिया। इससे व्रत करने वालों का व्रत भंग हो गया। इस पाप के कारण झरबेरी के नीचे स्थित पड़े उसके बच्चे को किसान का हल लग गया। दुखी किसान ने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और चला गया
ग्वालिन लौटी तो बच्चे की ऐसी दशा देख कर उसे अपना पाप याद आ गया। उसने तत्काल प्रायश्चित किया और गांव में घूम कर अपनी ठगी की बात और उसके कारण खुद को मिली सजा के बारे में सबको बताया। उसके सच बोलने पर सभी गांव की महिलाओं ने उसे क्षमा किया और आशीर्वाद दिया। इस प्रकार ग्वालिन जब लौट कर खेत के पास आई तो उसने देखा कि उसका मृत पुत्र तो खेल रहा था।
हल षष्ठी पूजा विधि
पूजा विधि अलग अलग स्थान पर अलग अलग तरीके से होती हैं प्रायः हल षष्ठी के दिन महिलाएं पवित्र मिट्टी की बेदी बनाकर उसमें गूलर, पलाश और कुश को रखती हैं. इसके बाद विधि-विधान के पूजा की जाती है. इस क्रम में बिन जुते हुए अनाज या खाद्य पदार्थ अर्पित करती हैं. इस व्रत में विशेष रूप से महुआ, भैंस का दूध, फंसही का चावल और उनसे बनी चीजों का इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही महिलाएं इन्हीं चीजों के माध्यम से व्रत पारण करती हैं.
हलषष्ठी व्रत के नियम
हल षष्ठी व्रत के दौरान किसी भी प्रकार का अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है. इसके साथ ही इस व्रत की पूजा के दौरान जुते हुए अनाज और सब्जियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. ऐसे में इस पावन व्रत में तलाब में पैदा होने वाले खाद्य पदार्थ यै बिना जोते गए पैदा होने वाली चीजों का प्रयोग किया जाता है. हल षष्ठी व्रत में विशेष रूप से भैंस के दूध और उससे बनी चीजों का ही इस्तेमास किया जाता है।
हल षष्ठी या हल छठ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से एक या दो दिन पूर्व मनाई जाती है. उत्तर भारत में इसे हल षष्ठी, ललही छठ या हल छठ कहते हैं और गुजरात में राधन छठ कहा जाता है।
रवि योग में सूर्य देव की कृपा होती है। यह योग अमंगल को दूर करके शुभ और सफलता प्रदान करता है. रवि योग का समय पूजा पाठ के लिए उत्तम समय है।
रिपोर्ट लाइव भारत समाचार