बस्ती, 30 जून -लाइव भारत समाचार :- मानसून की पहली बरसात में ही वर्षों के विकास की पोल खुल गईं। शुक्रवार को सुबह से ही बूदा बांदी होती रही। बीच बीच में तेज बारिश भी हुई। पहली बरसात में ही शहरी क्षेत्र की हालत दयनीय हो गई। ऐसा पहली बार नही हुआ है, जब भी बरसात का मौसम आता है, लोग शहरी विकास पर सवाल उठाने लगते हैं। लेकिन जिम्मेदार जनप्रतिनिधि पूरे वर्ष इसके बारे में नही सोचते।
वरना समय से पहले सजगता समस्याओं से ठोस समाधान की ओर ले जाती है। मालवीय रोड, बैरिहवां, आवास विकास, पुराना डाकखाना, कटरा सहित तमाम मोहल्लों में जलनिकासी एक बड़ी समस्या है। जनप्रतिनिधियों के पास शहरी विकास के बेहतर रोडमैप नही है, बल्कि अगला चुनाव कैसे जीतना है इसमें वे माहिर हो चुके हैं। भौकाली नेता जो बातों और दिखावे वाली सज्जनता से दिल जीत ले, जनता की पहली पसंद बन चुका है। यही कारण है कि विकास हाशिये पर है और वर्षों से शहर की सूरत एक जैसी है। बदलाव दूर तक नही दिखता।
नगरपालिका से तो उम्मीद करना बेकार है। पिछला कार्यकाल कोरोना और मनमानियों की भेंट चढ़ गया। जो बजट आया उसका बंदरबांट हो गया। पूरा शहर कोसता रहा लेकिन नेताओं की जेब भरती रही और समस्यायें मुंह बाये खड़ी रहीं। इस बार भी कोई परिवर्तन नही दिख रहा है। सिर्फ किरदार बदला है, सूरत बदलने की उम्मीद नही है। देखा जाये तो जिले से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के नेता बस्ती में ही रहते हैं। मालवीय रोड, धर्मशाला रोड, ब्लाक रोड सहित तमाम सड़कों और गली मोहल्लों की स्थिति ऐसी है राह चलना मुश्किल है। हलकी सी बरसात में पानी रास्तो पर पानी भर जाता है।
छुट्टा जानवरों से निजात दिलाने के अनेक आदेश हाशिये पर हैं, तस्वीर जस की तस है। बंदरों का ऐसा आतंक है कि बैग में सामान लटकाकर चलते हुये घर तक पहुंचना मुश्किल हो गया है। आते जाते राहगीरों और स्कूली बच्चों से झपट्टा मारकर सामान छीन लेना आम बात है। बगैर खम्भों के बिजली के तारों का ऐसा जाल बिछाया गया है कि मकड़ी भी शरमा जाये। इस बार शहरी मतदाताओं ने ऐतिहासिक मतों से नगरपालिका अध्यक्ष चुना है, उम्मीद ज्यादा होना भी स्वाभाविक है, फिलहाल बदलाव की कोई आहट नही दिख रही है। देखना अभी बाकी है कि जनता को पूर्व की भाति निराश होगी या फिर उम्मीदें भी परवान चढ़ेंगी।
रिपोर्ट: अनिल श्रीवास्तव लाइव भारत समाचार